Devvani & Divine Sudarshan Vashistika
Devvani & Divine Sudarshan Vashistika
Prayer
सर्वकाय दुधे देवि सर्वतीर्धीभिषे चिनि।
पावने सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमेास्तुते।।
A Unique Combination of Sudarshan Vashistika, Om, Sudarshan Chakra & Holy Word Ram
Complete swastika, mantra, tantra, yantra, Sudershan Chakra if Kird Jrusgba, Holy word ‘Ram’ in Devnagri is rotating with 90 in all directions, clockwise/ anticlockwise, gurumantra, depicting a dancing Lord, Wheel of Bapu’s ‘Charkha’ for socio-economic development; Four bows and charged arrows (for Dharm, Earth, Karm, Moksha) a cross section of Kahakundalini - Mahashakti, centre is the total expression of the ‘Shivling’, looks static but revolving energy for e-governance, a pious cross of Jesus in the middle in the middle and clearly defining the word “AUM” as indicated Mundakopnishad says (II 2.4):- “Pranava - Aum - is the bow. Soul is the arrow. Its mark is God. The marksman must be with the arrow mark and then aim. Absorbed concentration and and meditation alone can attain God”.
This auspious “rangoli” for need, creativity, responsibility and gratitude with a message: ”When God victorious at your heart, all darkness born with ego-sense disapears. There is nothing but a feast of immortal joy and peace for you”. It rotates with a universal sound ‘Aum’, Being a perfect symbol of vastu and a link of seen and unseen, vashistika is an ultimate expression came out after a long journey of evolution and metamorphosis of human civilization.
वंदे धेनु मातरम्ः देववाणी
पुरातन काल से अनेकों ऋषि-मुनि, योगी, महावतारी महापुरूषों ने गौमाता का गौरव, गरिमा व महत्व समझाया है। मानव कल्याण हेतु ईश्वर के इस अद्भुत महावरदान गौवंश की रक्षा कैसे हो जिससे सम्पूर्ण विश्व का मानव जीवन सुरक्षित हो सके।
प्रार्थना
सर्वकाय दुधे देवि सर्वतीर्धीभिषे चिनि।
पावने सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमेास्तुते।।
गौमां राष्ट्रीय मां
गाय खोल सकती है सबके, बंद भाग्य का ताला।
हर घर में हो एक गाय और, गाँव-गाँव में गौशाला।।
गौमाता, राष्ट्रीय मां, गौ मां चलता-फिरता मंदिर है।
हम गौ मां को देखने मात्र से 33 करोड़ देवी- देवताओं के दर्शन कर लेते हैं।
ऐसी करूणामयी मो की रक्षा करना प्राणीमात्र का कर्तव्य है। देवी-देवताओं का भी अपने
लेाकों मे काम न चला और फिर क्या था, वे सब अमृतमयी मां गौ के शरीर में रहने आ गये।
सुदर्शन वशिष्टिक, ऊँ, सुदर्शन चक्र व अक्षर राम का अनूठा संगम
महावतार श्री कृष्ण के साथ गउ मां है और उनकी अंगुली ने सुदर्शन चक्र गाय एवं चक्र प्रगति एवं रक्षा के प्रतीक हैं। हजारों वर्ष पूर्व ध्यान बिन्दुपनिषद् के ’रचयता’ ने इस महत्वपूर्ण श्लोक में ईश्वर की व्याख्या के मूल मंत्र ’ऊँ’, धनुष, तीर, ब्रह्य, एवं एकाग्रता का सम्बन्ध स्थापित किया है।
ओंकारं यो न जानाति ब्रह्यणी न भवेतु सः।
प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्य तल्लक्ष्यमुच्यते।।
अप्रमतेन वेद्धव्यं शरवतन्मयो भवेत्।
निवर्तन्ते क्रियाः सर्वास्तस्मिन्दृष्टे परावरे।। अर्थात
’जो ओउम् को नहीं जानता वह ब्रह्य को नहीं प्राप्त हो सकता। ओउम्
धनुष है, आत्मा स्वयं तीर है, ब्रह्य लक्ष्य है।। जैसे एक तीरन्दाज निशाना लगाते
समय तन्मय हो जाता है, उसी प्रकार ओउम् की उपासना में तन्मय हो जाना
चाहिए। ओउम् के अतिरिक्त और कोई संकल्प-विकल्प चित में न आने पाये,
फिर जीवात्मा ब्रह्य को प्राप्त हो जायेगा’।।