Maharishi Vashistha & Divine Kamdhenu
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Maharishi Vashistha & Divine Kamdhenu
It is really a ‘Kamdhenu’ the divine entity which is a source of life for both farmers & soldiers. Her divinity with as many as 33 Godesses and Gods has no parallel.
Establishing of the Maharishi Vashistha Institute of Gaushala Management and Research Council (MVIGMR) is a humble tribute to all the great seers and saints of India and particularly Maharishi Vashistha, the Chief of the seven venerated sages of Sapta Rishi Tara Mandal and the Rajguru of Suryavansh (Solar dynasty), the lineage of lord Ram. He was an ardent devotee of one of the prominent goddess of Mahavidya ‘Tara’ Being the Manas Putra of Lord Brahma, Rishi Vashistha his possession the divine cow, ‘Kamdhenu’ and Nandini, her child along with one of the biggest Gaushala of his time.
Indian desi cow such as Giri, Kanakraj, Dangi are adored as the embodiment of all divine forces. Indian culture has placed cow in the sacred position of Kamdhenu (the wish fulfilling holy deity) in Vedas and Puranas. Rigveda says killing and harming a cow are the greatest sins of all things. Inspired by revered Maharishi Vashistha, the Council aims to propagate his wisdom which is indispensable for overall development of human beings specially when the new generation is facing challenges to cope with digital technology
महर्षि वशिष्ठ व दिव्य कामधेनु
परिषद् वास्तव में दिव्य ‘कामधेनु‘ की प्रेरणा से कार्य कर रही एक ईश्वरीय इकाई है जो किसानों और सैनिकों दोनों के लिए जीवन का स्रोत है। गाय की दिव्यता का विश्व में कोई समानांतर नहीं है। गौमां का महत्व इस बात से पता चलता है कि 33 करोड़ देवता भी अपने लोक छोड़ इनके पवित्र शरीर में वास करने लगे।
महर्षि वशिष्ठ इंस्टीट्îूट ऑफ गौशाला मैनेजमेंट एंड रिसर्च काउंसिल (एमवीआईजीएमआर) की स्थापना भारत के सभी महान संतों और विषेश रूप से महर्षि वशिष्ठ, सप्त ऋषि तारा मंडल के सात पूज्य ऋषियों में प्रमुख और सूर्यवंश के राजगुरु को विनम्र श्रद्धांजलि है। महर्षि वशिष्ठ सौर वंश भगवान राम के राजगुरू थे जो दस महाविद्या की द्वितीय पराशक्ति ‘तारा‘ के प्रबल साघक थे, और भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र होने के नाते, ऋषि वशिष्ठ ने दिव्य गाय, ‘कामधेनु‘ और उसकी बेटी नंदिनी, के साथ-साथ अपने समय की सबसे बड़ी गौशाला की सेवा को समर्पित थे।
जिस घर में गऊ सेवा है वहाँ असुरी शक्तियां स्वयं नष्ट हो जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि-हे अर्जुन सारी उपनिषद् गऊ है उसका बछड़ा पार्थ अर्जुन है, उस गाय को दुहने वाले भगवान स्वयं है, और उस दूध को पीने वाले अनन्य भक्त है। गाय वात्सल्य की मूर्ति है, सनातन धर्म में गौमाता की महिमा वेद पुराणों, उपनिषदों, रामायण में वर्णित है। वेदों मे 1331 बार गोमाता की वर्णन है गऊ का सारा जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित है। अर्थवेद में मूल स्त्रोत है गाय का दूध सभी प्रकार से गुणकारी है। भारतीय देशी गाय जैसे सहवाल, गिरी, कनकराज , डांगी को सभी दिव्य शक्तियों की अवतार के रूप में माना जाता है। भारतीय संस्कृति ने वेदों और पुराणों में गाय को कामधेनु (इच्छा पूर्ति करने वाली) को पवित्र स्थान में रखा है, ऋग्वेद कहता है कि गाय को मारना और नुकसान पहुंचाना सभी के लिए सबसे बड़ा पाप है। श्रद्धेय महर्षि वशिष्ठ से प्रेरित, परिषद् का उद्देष्य महात्माओं और गौसेवकों के ज्ञान का प्रचार करना है जो मानव के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है, विशेषकर जब नई पीढ़ी डिजिटल प्रौद्योगिकी के जंजाल से निपटने के लिए शारिरिक , मानसिक व आध्यात्मिक चुनौतियों का सामना कर रही हो और सम्पूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा हो।